फैशन यानि बनाव श्रृंगार हर नारी का जन्मसिद्ध अधिकार है। फैशन हमेशा घूम कर वापिस आता है। फैशन का इतिहास और आजकल के न्यू फैशन और फैशन शो के बारे में जानें।
फैशन क्या है : What is Fashion
फैशन वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार का पर्याय है। फैशन हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग है, जिसके बिना हम आज के आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। लोग बनाव श्रृंगार में सिर्फ कपड़ों को ही ज्यादा महत्व देते हैं, लेकिन वास्तव में इसका मतलब कुछ व्यापक है। अपने बनाव श्रृंगार में कुछ नया करना और दूसरों से अलग दिखना ही फ़ैशन है। आधुनिकता से सामंजस्य बनाते हुए समयानुकूल अपने परिधानों का चयन जो लोगों को पसंद आए, पहनने में आरामदायक हो और साथ ही मन को प्रफुल्लित करे। वेश-भूषा समय और परिस्थितियों के अनुसार नित्य परिवर्तनशील हैं। जो आज प्रचलन में है, हो सकता है कि कल प्रचलन से बाहर हो जाए।
वर्तमान में आपके कपड़े पहनने, हेयरस्टाइल, रहन सहन का तरीका जो आज का ट्रेंड है, कल को यह सब कुछ अलग होगा क्योंकि वो उस दौर का वेश-भूषा होगी। फैशन एक स्टेटस सिंबल है जो हमें जीना सिखाता है और हमारे जीवन स्तर को बेहतर बनाता है। लोग नए नए परिधानों के इच्छुक होते हैं, चाहे कोई सेलिब्रिटी हो या आम आदमी। समय के साथ-साथ पुराने फैशन को छोड़कर नए दौर के प्रचलित ट्रेंड में अपनी रुचि और दिलचस्पी दिखाते हैं। वेश-भूषा और बनाव श्रृंगार दोनों एक दूसरे के पूरक हैं जो उपयोगकर्ता को और अधिक सुंदर महसूस कराते हैं।
वेश-भूषा जहां जीवन का प्रतिनिधित्व करता है, वही वह दुनिया के साथ सबसे मजबूत और जीवंत जुड़ाव महसूस कराता है। व्यक्तिगत पहचान और संस्कृति से यहां इसका अद्भुत और अटूट संबंध है, वहीं हम अपने दैनिक जीवन में नए रुझानों को अपनाकर अपने चेहरे पर मुस्कान और आत्मविश्वास का अनुभव करते हैं।
फैशन को जानने की जिज्ञासा, रंगों का संयोजन, डिजाइनर कपड़े, आभूषण, नवीनतम केश विन्यास का सही चुनाव हमारे व्यक्तित्व को निखारने में अपनी अहम भूमिका निभाता है। वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार हर किसी की व्यक्तिगत पहचान होती है, जहां वह एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से अलग पहचान देती है, साथ ही वहाँ सहज महसूस कराती है। लोग आपकी सराहना करते हैं और आप दूसरों पर अपनी एक पहचान छोड़ते हैं।
बनाव श्रृंगार
आत्मविश्वास आपके व्यक्तित्व का आकर्षण है, तो वही नयनाभिराम वस्त्र, केश विन्यास, सौंदर्य प्रसाधन और आभूषण का सही चयन उस व्यक्तित्व का असली रत्न है। बहुत से लोगों को सौंदर्य प्रसाधनों को सही तरीके से संयोजित करना नहीं आता। उसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाव श्रृंगार एक ऐसा प्लेटफार्म बनाया गया है जिस पर आप अपने फैशनेबल संस्कृति का अवलोकन कर सकते हैं और फैशन जगत में होने वाली नई जानकारियों को अपडेट करते हैं। आजकल की जिंदगी में मेकअप और ब्यूटी ट्रेंड का ध्यान रखना बहुत जरूरी है, फिर वो चाहे ऑफिस, कॉलेज या फिर आप एक हाउस वाइफ ही क्यों न हों।
सुंदर और मुस्कुराता चेहरा हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है और ऐसे में इसकी चमक और निखार को बढ़ाने के लिए मेकअप की सहायता लेना कोई बुरी बात भी नहीं है। बनाव श्रृंगार युवा और नारियों को एक ऐसा मंच प्रदान करता है जो नए ट्रेंड के जुनून के साथ अपने भविष्य को उज्ज्वल बनाना चाहते हैं। श्रृंगार तो मानो नारी का जन्मसिद्ध अधिकार है।
पारंपरिक और धार्मिक त्योहारों में तीज, करवा चौथ, रक्षाबंधन, भाई दूज बहुत से अवसर आते हैं, जिनमें मेहंदी को शुभता का प्रतीक माना जाता है। ललाट की शोभा बिंदी जहां महिलाओं के चेहरे की सुंदरता को आकर्षण का केंद्र बना देती है और उसके श्रृंगार को पूर्णता प्रदान करती है। नारी के सोलह श्रृंगार को पूर्ण करती चूड़ियों की खन खन, पायल की छम छम नारी की मतवाली चाल हर किसी के मन को मोहित कर जाती है। कुछ ऐसी ही कहानियों की चर्चा हम यहाँ पर करते हैं।
जीवन जीने का नवीन आयाम जो पहनावों, रुचियों आदि के इर्द-गिर्द घूमता है। वर्तमान बनाव श्रृंगार के रुझान का अनुसरण करने वाले लोग कपड़ों, बालों, एक्सेसरीज, मेकअप, फुटवियर आदि की लोकप्रिय शैली का अनुसरण करते हैं। फैशनेबल होने का अभिप्राय नए नए ट्रेंड से भी है यानी कि जो नया है और जिसे सब पसंद कर रहे हैं। सजना संवारना हर व्यक्ति को पसंद है, इसके लिए वह कोई ना कोई ट्रेंड को जरूर फॉलो करता है। साथ ही उसी के अनरूप ज्वेलरी और हेयर स्टाइल का भी इस्तेमाल करते हैं।
साल भर त्योहार चलते रहते हैं जैसे कि होली, दीवाली, दशहरा, रक्षाबंधन और कई अन्य लोक उत्सव। बनाव श्रृंगार में आकस्मिक और सहज लालित्य है। महिलाएं अपनी पोशाक को लेकर काफी जागरूक रहती हैं और अपनी अलमारी में नए-नए आउटफिट्स शामिल कर सकती हैं क्योंकि फैशन उद्योग में नित्य नए-नए वस्त्र या फिर ज्वेलरी के ट्रेंड आते रहते हैं। एक क्लासी लुक के लिए ड्रेस के साथ मेकअप, हेयरस्टाइल, ज्वेलरी भी एक अहम भूमिका निभाती हैं, खासकर चूड़ियां, झुमके,हार आदि। चाहे पाश्चात्य हो या पारंपरिक दोनों के लिए अलग-अलग तरह की सौन्दर्य शैली है।
फैशन का इतिहास
मनुष्य शुरुआती समय से चमड़े और पेड़ों के पत्तों का इस्तेमाल अपने शरीर को सर्दी गर्मी से बचाने के लिए उपयोग करता था। वहां से वस्त्रालंकारों का निरंतर विस्तार होता रहा है। कपास और पश्मीने का जिक्र पुरानों में भी आता है, उन बातों से हम विमुख नहीं हो सकते। भारत में पौराणिक व ऐतिहासिक काल में ऐश्वर्यशाली वस्त्रालंकारों की परंपरा रही है। एक तरफ भगवान शिव बाघ की खाल वाले कपड़े धारण करते, पूरे शरीर में भस्म लगाते हैं और सांप, बिच्छुओं के आभूषण धारण करते हैं वहीं भगवान विष्णु रेशमी पीताम्बर और मणियों जड़ित स्वर्णाभूषण धारण करते हैं।
राजा जनक ने अपनी पुत्रियों के विवाह में बहुसंख्य वस्त्रों एवं मोती, मूंगे जड़े आभूषणों के साथ अत्यंत सुन्दर दुशाले एवं रेशमी वस्त्र दिए थे। तुलसीदास जी भगवान राम और माता जानकी के विवाह के समय स्वर्ण के कलश एवं मणि के सुन्दर थालों का वर्णन भी करते हैं। पुरातन काल में रेशमी वस्त्रों का चलन था, जो परम्परा आज तक चली आ रही है। लीलाधर श्रीकृष्ण के मुकुट में कई मणियां जड़ी होती थीं। वह पीतांबर व आभूषणों में कमरबंध, बाजूबंध, मणिबंध और सिर पर मोर मुकुट धारण करते थे।
आधुनिक काल में फैशन की उत्पत्ति वर्ष 1826 से है। चार्ल्स फ्रेडरिक को दुनिया का पहला फैशन डिजाइनर, फैशन शो का जनक कहा जाता है। जिसने अपने ग्राहकों को सलाह दी कि कौन से कपड़े उन पर अच्छे लगेंगें। वेश-भूषा में नए विकास की नींव रखी जो एक तूफान के सैलाब की तरह पूरी दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गई। 20वीं शताब्दी के मध्य में, एक बदलाव हुआ।
लोगों का फैशन के प्रति झुकाव देखते हुए कपड़ों का प्रचलन विभिन्न रूपों में होने लगा। भारतीय और पाश्चात्य दृष्टिकोण के सामंजस्य को आत्मसात करते हुए अधिक से अधिक लोग आधुनिक एवं प्रचलित परिधानों के साथ जुड़ने लगे। 20वीं शताब्दी के अंत तक, फैशन जागरूकता की भावना बहुत मजबूत हो गई है।अब लोग अपनी-अपनी शैली की पसंद के आधार पर कपड़ों का चुनाव करते हैं । मानव जिज्ञासु प्रवृत्ति का और अधिक पाने की लालसा के कारण ही लोगों ने प्रचलन में चलने वाले ट्रेंड के साथ अपने नए रुझानों को भी अपनाना शुरू कर दिया।
नयापन अर्थात सौंदर्य के सृजन के महत्व को हम नकार नहीं सकते। उसी में संतुष्ट होने की अपेक्षा उसे और अधिक सुंदर बनाने की चेष्टा करना, मनुष्य की मूल प्रवृत्ति है। सौंदर्य का सृजन फैशन की आत्मा है। वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार क्षेत्र में रोजगार, समृद्धि और सफलता के शिखर पर पहुंचने के आज अपार अवसर दिखाई देते हैं। लेटेस्ट ट्रेंड क्या है, इसकी आम जन को भी काफी जानकारी होती है। फैशन रोजमर्रा के जीवन का अनिवार्य अंग बन गया है।
फैशन चक्र क्या है
बनाव श्रृंगार सौंदर्य ढंकने का नहीं अपितु सौंदर्य निखारने का साधन है। मन का संवेदनशील होना बहुत जरूरी है, जिसमें कुछ नया करने की ललक और अपने आत्मविश्वास से अपने जीवन को सार्थक बनाने का सक्षम प्रयास ही फैशन है। किसी जमाने में लोकप्रिय रहा परिधान, गहनें और केश विन्यास ट्रेंड के नाम पर पुनः अवतीर्ण होता है।
फैशन का कालचक्र कभी थमता नहीं, वह निरंतर घूमता रहता है और पुनः कुछ बदलाव के बाद लौट आता है। वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगारके बारे में विचार करें तो दुनिया गोल है जो निरन्तर परिवर्तनशील है परन्तु कहीं निर्वस्त्र अवस्था से आरंभ आदमी की यह यात्रा फिर कहीं वहीं न पहुंच जाए। उम्र, सामाजिक वर्ग, पीढ़ी, क्षेत्रों के अनुसार एक समाज के भीतर वेश-भूषा समय के साथ काफी भिन्न हो सकती है।
फैशन का पाश्चात्य एवं भारतीय रूप
भारत बदलती संस्कृतियों और परंपराओं के विभिन्न रंगों का प्रतिनिधित्व करता है। किसी समय में फिल्म की हीरोइन मुमताज के साड़ी बांधने की स्टाइल को ही लोगों ने बहुत सराहा था जो उस समय का ट्रेंड बन गया था। वैसे ही बनारसी साड़ी हर दिल अजीज है, पर मथुरा के रंगों से परिपूर्ण वस्त्र हमेशा से ही लुभाते रहे हैं। मयूर पंख, मधुबनी पेंटिंग और चमकीले रंगों का मेल कपड़ों को आकर्षक बनाता है।
लोग परंपरागत ड्रेस को इंडो वेस्टर्न लुक में भी अपनाते हैं। एक व्यक्ति जो पहनता है, वह उसके व्यक्तित्व या रुचियों को प्रतिबिंबित करता है। जब सेलिब्रिटी नई या अलग शैली अपनाना शुरू करते हैं, तो वे एक नई फैशन प्रवृत्ति को प्रेरित करते हैं। जो लोग इन सेलिब्रिटी को पसंद करते हैं या उनका सम्मान करते हैं, वे उनके स्टाइल से प्रभावित होते हैं और उसी तरह के स्टाइल वाले कपड़े पहनने लगते हैं।
Fashion Show
चार्ल्स फ्रेडरिक को फैशन-शो का जनक माना जाता है। उनके पहल से पूरी दुनिया में फैशनेबल कपड़ों का सैलाब सा आ गया। लोगों की पसंद को मूर्त रूप देते हुए उन्हें क्या पहनावा धारण करना चाहिए से अवगत कराया। फैशनेबल परिधानों को पहले पुतलों पर पहना कर लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया जाता, जिन्हे लोगों ने खूब सराहा।
उसके बाद लोगों के उत्साह को देखते हुए उन्होंने अपने परिधानों को स्त्री और पुरुष को मॉडल के रूप में प्रस्तुत कर फैशन-शो करना प्रारम्भ किया। वर्तमान में फैशन-शो भविष्य के ट्रेंड को व्यक्त करने वाला एक सजीव रूप है जो परिधानों और उसके सहायक सोलह श्रृंगार सौंदर्य प्रसाधनों की मूर्त अभिव्यक्ति करता है। पाश्चात्य एवं भारतीय आधुनिक परिधानों में सजे युवा जैसे-जैसे रैम्प पर पहुंचते, पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठता है, तथा फैशन के जिज्ञासु लोग नए ट्रेंड को अपनाने के लिए उत्साहित हो जाते हैं।
फैशन को प्रभावित करने वाले आयाम
वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार कई कारकों से प्रभावित होता है, जिनमें सिनेमा, मशहूर हस्तियां, जलवायु, डिजाइन, राजनीतिक, आर्थिक, उपयोगिता और रहन सहन शामिल है। जैसे पंजाब का सलवार सूट उपयोगिता और आरामदेह होने के कारण भारत की महिलाओं का प्रमुख परिधान बन चुका है।
मीडिया ऐसा ही एक प्लेटफॉर्म है जो फैशन उद्योग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दुनिया भर के पाठक और दर्शक वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार के ट्रेंड के बारे में जान सकते हैं, जिससे यह बहुत सुलभ हो जाता है, विज्ञापन दर्शकों को जानकारी प्रदान करते हैं और उत्पादों और सेवाओं की बिक्री को बढ़ावा देते हैं। वस्त्र उद्योग उपभोक्ताओं को आकर्षित करने और बिक्री उत्पन्न करने के लिए अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए विज्ञापनों का उपयोग करता है। आधुनिक ट्रेंड के जनसंपर्क में सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, विभिन्न प्लेटफार्मों के माध्यम से उपभोक्ताओं की एक विस्तृत श्रृंखला तक पहुंचने में सक्षम है।
न्यू फैशन
परंपरा और संस्कृति का देश होने के बावजूद भारत में वेश-भूषा का बहुत महत्व है। यह एकभारत समृद्ध संस्कृति और परंपरा का देश है। उत्तर भारत में महिलाएं सलवार कुर्ता पहनती हैं वहीँ दक्षिण में महिलाएं साड़ियाँ पहनती हैं। पश्चिमी महिलाएं ब्लाउज और स्कर्ट पहनना पसंद करते हैं। फैशनेबल रहने के लिए और नवीनतम रुझानों का पालन करने के साथ-साथ अलग-अलग तरीकों और शैलियों में पारंपरिक कपड़ों का प्रयोग करना पसंद है जो लोगों के मध्य बंधन और एकता को दर्शाता है।
कुछ समय पहले यह समृद्ध और प्रसिद्ध लोगों, राजनीतिक या शाही हस्तियों तक ही सीमित था, लेकिन आज फैशन की पहुँच सामान्य लोगों तक हो गई है और विज्ञापन मीडिया ने भी ट्रेंडिंग वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार के बारे में लोगों को अपडेट करने के लिए बहुत योगदान दिया है।फैशन का जादू आज लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है और यह जीवन जीने का भी एक तरीका बन गया है। यह लोगों के लिए सुंदरता और आराम का आईना है। हम सब अच्छे दिखना चाहते हैं और फैशन की दुनिया के पास हमें देने के लिए भी बहुत कुछ है।
इस प्रकार हम ट्रेंडिंग और आरामदायक प्रवृत्ति के अनुसार हमारी अपनी शैली को अपना सकते हैं। विशेष रूप से किशोर और महिलाएं, वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार के बारे में अधिक जागरूक होते हैं और उन्हें अलग-अलग बालों का स्टाइल बनाना, कपड़ों को पहनकर देखना इत्यादि का लगातार प्रयोग करते हुए देखा जा सकता है। एक ट्रेंड कभी भी स्थिर नहीं रहता, यह निरन्तर बदलता रहता है। फैशन डिजाइनर बहुत रचनात्मक रूप से नए रुझानों के साथ पुरानी शैलियों को मिलाते हुए और नए तरीके के परिधानों को प्रस्तुत करते हैं, इसका अंधाधुंध रूप से पालन करने की बजाए पहले अपने शरीर और आराम की जरूरतों को समझे।
फैशन क्या है?
फैशन वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार का पर्याय है। यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग है, जिसके बिना हम आज के आधुनिक जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।
बनाव श्रृंगार और फैशन में क्या सम्बन्ध है?
नयनाभिराम वस्त्र, केश विन्यास, सौंदर्य प्रसाधन और आभूषण का सही चयन उस व्यक्तित्व का असली रत्न है। इन सब के बिना बनाव श्रृंगार अधूरा है।
फैशन का इतिहास क्या है?
मनुष्य शुरुआती समय से चमड़े और पेड़ों के पत्तों का इस्तेमाल अपने शरीर को सर्दी गर्मी से बचाने के लिए उपयोग करता था। आधुनिक काल में फैशन की उत्पत्ति वर्ष 1826 से है। चार्ल्स फ्रेडरिक को दुनिया का पहला फैशन शो का जनक कहा जाता है।
फैशन चक्र क्या है
फैशन का कालचक्र कभी थमता नहीं, वह निरंतर घूमता रहता है और पुनः कुछ बदलाव के बाद लौट आता है। वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगारके बारे में विचार करें तो दुनिया गोल है जो निरन्तर परिवर्तनशील है।
फैशन का पाश्चात्य एवं भारतीय रूप में क्या फर्क है?
लोग परंपरागत ड्रेस को इंडो वेस्टर्न लुक में भी अपनाते हैं। एक व्यक्ति जो पहनता है, वह उसके व्यक्तित्व या रुचियों को प्रतिबिंबित करता है।
फैशन को प्रभावित करने वाले आयाम कौन से हैं?
वेश-भूषा एवं बनाव श्रृंगार कई कारकों से प्रभावित होता है, जिनमें सिनेमा, मशहूर हस्तियां, जलवायु, डिजाइन, राजनीतिक, आर्थिक, उपयोगिता और सामाजिक रहन सहन शामिल है।